कक्षा 10 की एनसीईआरटी हिंदी पाठ्यपुस्तक "क्षितिज भाग 2" में शामिल "यह दंतुरित मुस्कान" प्रसिद्ध कवि नागार्जुन की एक अत्यंत मार्मिक और संवेदनशील कविता है। नागार्जुन, जिन्हें "जनकवि" के रूप में भी जाना जाता है, अपने सरल और सजीव भाषा शैली के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाओं में समाज के प्रति गहरी संवेदना और आम जनजीवन की सजीव झलकियाँ देखने को मिलती हैं.
"यह दंतुरित मुस्कान" एक बाल कविता है, जिसमें एक बच्चे की निर्दोष मुस्कान का वर्णन किया गया है। इस कविता में कवि ने एक छोटे बच्चे की पहली मुस्कान के माध्यम से उसके मासूमियत और जीवन की सुंदरता का चित्रण किया है। बच्चे की मुस्कान को कवि ने "दंतुरित मुस्कान" कहा है, जिसका अर्थ है कि वह मुस्कान जिसमें अभी ठीक से दाँत नहीं आए हैं। इस मुस्कान में सजीवता, मासूमियत और अपार आनंद का भाव झलकता है, जिसे देखकर कवि का मन भी प्रसन्न हो उठता है.
कविता में कवि ने बच्चे की मुस्कान को जीवन की खुशियों और संभावनाओं का प्रतीक बताया है। यह मुस्कान अपने आप में एक नई शुरुआत का प्रतीक है, जिसमें जीवन के सारे दुख और कष्ट मिट जाते हैं। नागार्जुन जी ने इस कविता के माध्यम से एक सरल किन्तु गहरी संवेदना को व्यक्त किया है, जो जीवन के सहज आनंद और प्रेम को दर्शाती है.
"यह दंतुरित मुस्कान" कविता के माध्यम से छात्रों को बचपन की मासूमियत, सरलता और आनंद की अनुभूति होती है। यह कविता हमें जीवन के छोटे-छोटे पलों में भी खुशी ढूँढ़ने की प्रेरणा देती है। नागार्जुन जी की यह रचना हिंदी साहित्य में उनकी संवेदनशील और मानवीय दृष्टिकोण का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस कविता के अध्ययन से छात्रों को जीवन की सुंदरता और मासूमियत का एहसास होता है, जो उनकी सोच को सरल और सकारात्मक बनाता है.